Sunday, October 6, 2019

दोहा संख्या 22

पायल बज बज कह रही, मैं बैठूँ किस छाँव
पैरों में छाले पड़े, मिला न पी का गाँव।

दोहा संख्या 21

छिप कर देखे प्रेयसी, प्रेमी को दिन रैन
रही सदा इस आस में, कभी मिलेंगे नैन।

दोहा संख्या 20

अम्मा डांटे रात दिन , पापा दें दुत्कार
इक सेकेंड सौ लाइक , एफ बी है परिवार।

दोहा संख्या 19

गिरगिट बदले रंग तो उसका कोई ना मोल
सुरकावे के रंग ने किया उसे अनमोल।

दोहा संख्या 18

पंडित, फादर, मौलवी, सब के अपने रंग,
बस ईश्वर को पकड़िए, चलो सत्य के संग।

दोहा संख्या 17

गीता में श्री कृष्ण नें , ज्ञान दिया अविराम,
जीवन में हम धार लें, मिल जाये आराम।

दोहा संख्या 16

जग मिथ्या है झूठ है, सच्चा शिव का नाम
मन से जपिये अब इसे, इससे ही आराम।

दोहा संख्या 15

मन के सागर को मथा, तब जागा यह ज्ञान
हृदय विराजे राम हैं , करना उनका ध्यान।।।

दोहा संख्या 14

मैं से नाता तोड़ कर, हम का हो विस्तार
तब जीवन मे शांति सुख , का होगा अभिसार।

Saturday, October 5, 2019

दोहा संख्या 13

सीखा है संसार से , हमने बस ये पाठ,
अंतर मन में ही मिलें, सदा सिया रघुनाथ।

दोहा संख्या 12

दिन दूनी औ चौगुनी ,प्रगति हुई इस बार
जब अम्मा को सुख दिया, औ बाबा को प्यार।

दोहा संख्या 11

माँ बाबा के संग में, बीते बस दिन चार
बाकी जीवन यूँ रहा, जैसे हो व्यापार।

Friday, October 4, 2019

दोहा संख्या 10

लो मैं उनकी हो गयी, बिना किसी पहचान
शायद इसको बोलते, प्रेम योग का ज्ञान।

दोहा संख्या 9

कर्मों के फल से मिले, नई देह को रूप
जितना ऊँचा सूर्य हो, उतनी खिलती धूप।

दोहा संख्या 8

मन सोए तो रैन है , मन के जगे प्रभात
जीवन चरखा चल रहा, इसी सत्य को कात।

दोहा संख्या 7

मंदिर मस्जिद कर रहे, फिर आपस में बात
कैसे तुम हिन्दू भये, औ हम मुस्लिम जात।

दोहा संख्या 6

तुझसे ही संध्या खिली, तुझ से जागी भोर
यही प्रीत की रीत है, तुझ बिन अंदर शोर।

दोहा संख्या 5

सो न सके चातक नयन, देखें पियु की राह
उनके उत्तर के बिना, दुख की नहि है थाह।

दोहा संख्या 4

अधरों की मुस्कान तुम, तुम नैनन का नीर
तुम से ये दुनिया भली, तुम बिन जीवन पीर।

दोहा संख्या 3

तन दिखता रंगीन अरु, मन धारे है घाव
पीर दिखाओ बस उसे, जो समझे मन भाव।

दोहा संख्या 2

उसके प्रश्नों ने किया, कार्य एक अविराम
खोज खबर लेते रहे, चाहे दिन या रात।

दोहा संख्या 1


चंचल दृग हैं ढूंढते, तुझको चारों ओर
बिन तेरे कैसे भला, अंशुमान हो भोर।।